भारत का सर्वोच्च न्यायालय वक्फ एक्ट (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई करने वाला है, जिसके कारण देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा आज दोपहर 2 बजे मामले की समीक्षा की जाएगी।
मुख्य याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, टीएमसी, एसपी, एआईएमआईएम, आरजेडी, डीएमके, सीपीआई के सांसद और एआईएमपीएलबी, जमीयत उलमा-ए-हिंद और समस्त केरल जमीयतुल उलेमा जैसे कई मुस्लिम संगठन, नागरिक अधिकार समूह और व्यक्तिगत याचिकाकर्ता शामिल हैं। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह अधिनियम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, धार्मिक बंदोबस्त की स्वायत्तता को कमजोर करता है और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव करता है, जबकि केंद्र इसे पारदर्शिता की दिशा में एक कदम बताकर बचाव कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ एक्ट (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई करेगा
भारत का सर्वोच्च न्यायालय आज (बुधवार) वक्फ एक्ट (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं के एक महत्वपूर्ण समूह पर सुनवाई करेगा, यह एक ऐसा कानून है जो अपने अधिनियमन के बाद से ही तीव्र राष्ट्रव्यापी विवाद और विरोध के केंद्र में रहा है। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, और न्यायमूर्ति संजय कुमार और के.वी. विश्वनाथन की तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जाएगी, जिसकी सुनवाई दोपहर 2 बजे शुरू होगी।
याचिकाकर्ता कौन हैं?
याचिकाएँ विपक्षी राजनीतिक नेताओं, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और मुस्लिम धार्मिक निकायों के व्यापक गठबंधन का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रमुख नामों में शामिल हैं:
- कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद
- तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा
- समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क
- राजद, जद (यू), एआईएमआईएम (असदुद्दीन ओवैसी), वाईएसआरसीपी, डीएमके, सीपीआई के नेता
- विजय, अभिनेता-राजनेता और तमिलगा वेत्री कझगम प्रमुख
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद (अरशद मदनी गुट), समस्त केरल जमीयतुल उलेमा और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे मुस्लिम संगठन
- एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स जैसे एनजीओ
- तैय्यब खान सलमानी, मोहम्मद शफी और मणि मुंजाल जैसे व्यक्तिगत याचिकाकर्ता
याचिकाओं में क्या चुनौती दी गई है?
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वक्फ एक्ट संशोधन अधिनियम, 2025:
- संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-ए में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- धार्मिक स्वायत्तता को प्रतिबंधित करके और वक्फ एक्ट संपत्तियों पर अनुचित नियंत्रण रखकर मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है।
- यह धर्म की संवैधानिक स्वतंत्रता और समुदाय के अपने धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्तों का प्रबंधन करने के अधिकार पर सीधा हमला है।
- यह एक “मनमाना, बहिष्कार करने वाला और भेदभावपूर्ण” कदम है, जो मुस्लिम संस्थानों को दरकिनार करते हुए अन्य धार्मिक ट्रस्टों को स्वायत्तता देता है।
डीएमके ने ए राजा के माध्यम से कहा कि जेपीसी में उठाई गई आपत्तियों के बावजूद, हितधारकों के साथ उचित परामर्श के बिना कानून पारित किया गया।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने कानून को एक “खतरनाक साजिश” करार दिया, और एआईएमपीएलबी ने कहा कि यह अनुच्छेद 25 और 26 को कमजोर करता है, जिससे धार्मिक प्रशासन को अपने हाथ में लेने के सरकारी प्रयासों का खुलासा होता है।
सरकार का रुख क्या है वक्फ एक्ट को लेके ?
केंद्र सरकार ने संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और दक्षता में सुधार लाना है तथा धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने या किसी समुदाय के खिलाफ भेदभाव करने के किसी भी इरादे से इनकार किया है।
आगे क्या होगा ?
आज से जब सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई शुरू हो रही है, तो इसका परिणाम भारत में धार्मिक अधिकारों, अल्पसंख्यक स्वायत्तता और धार्मिक संपत्तियों पर राज्य के नियंत्रण के संबंध में एक ऐतिहासिक मिसाल कायम कर सकता है।
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